यह भजन “भज मन राम चरण सुखदाई” गोस्वामी तुलसीदास जी की रचना है, जिसमें भगवान श्रीराम के चरणों की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि श्रीराम के पावन चरण ही जीवन के सभी दुखों का नाश करने वाले और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। जिन चरणों से गंगा प्रकट हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया, वही चरण भरत ने हृदय से लगाए और केवट ने धोकर पूजा। इन्हीं चरणों की सेवा से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को उद्धार मिला और दंडकारण्य का पाप मिटा। भगवान राम के चरणों की महिमा ऐसी है कि सुग्रीव, विभीषण और अनगिनत भक्तों को आश्रय व विजय प्राप्त हुई। तुलसीदास जी कहते हैं कि वे चरण ही सभी संतों, देवताओं और ऋषियों द्वारा पूज्य हैं, और उनका स्मरण करने से जीवन धन्य हो जाता है।
भजमन राम चरण सुखदाई लिरिक्स
भजमन राम चरण सुखदाई,
भजमन राम चरण सुखदाई ।।
जिहि चरननसे निकसी सुरसरि
संकर जटा समाई,
जटासंकरी नाम परयो है,
त्रिभुवन तारन आई ।।
जिन चरननकी चरनपादुका,
भरत रह्यो लव लाई,
सोइ चरन केवट धोइ लीने,
तब हरि नाव चढ़ाई ।।
सोइ चरन संतन जन सेवत,
सदा रहत सुखदाई,
सोइ चरन गौतमऋषि-नारी,
परसि परमपद पाई ।।
दंडकबन प्रभु पावन कीन्हो,
ऋषियन त्रास मिटाई,
सोई प्रभु त्रिलोकके स्वामी,
कनक मृगा सँग धाई ।।
कपि सुग्रीव बंधु भय-ब्याकुल,
तिन जय छत्र धराई,
रिपु को अनुज बिभीषन निसिचर,
परसत लंका पाई ।।
सिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक,
सेष सहस मुख गाई,
तुलसीदास मारुत-सुतकी प्रभु,
निज मुख करत बड़ाई ।।
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