कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं: यह भजन मानव जीवन की सच्ची सार्थकता पर गहरा संदेश देता है। इसमें बताया गया है कि केवल मंदिर जाने, पूजा-पाठ करने, गंगा स्नान करने, दान करने या वेद-शास्त्र पढ़ने से जीवन सफल नहीं होता, जब तक इंसान दूसरों की सेवा और मदद न करे। भूखे को भोजन, प्यासे को पानी, गिरते हुए को सहारा और माँ-बाप की सेवा करना ही असली धर्म है। बाहरी आडंबर और कर्मकांडों से अधिक महत्त्व मानवता, करुणा और सेवा का है, क्योंकि यदि मन शुद्ध नहीं और दूसरों के लिए दया भाव नहीं, तो सारे धार्मिक कर्म व्यर्थ हो जाते हैं।
कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं लिरिक्स in Hindi
कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं,
बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा,
कभी गिरते हुए को उठाया नहीं,
बाद आँसू बहाने से क्या फायदा ।।
मैं तो मन्दिर गया, पूजा-आरती की,
पूजा करते हुए ये ख्याल आ गया,
कभी माँ–बाप की सेवा की ही नहीं,
सिर्फ पूजा के करने से क्या फायदा,
कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं,
बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा ।।
मैं तो सत्संग गया, गुरुवाणी सुनी,
गुरुवाणी को सुनकर ख्याल आ गया,
जन्म मानव का लेकर दया ना करी,
फिर मानव कहलाने से क्या फायदा,
कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं,
बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा ।।
मैंने दान किया, मैंने जप-तप किया,
दान करते हुए ये ख्याल आ गया,,
कभी भूखे को भोजन खिलाया नहीं,
दान लाखों का करने से क्या फायदा,
कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं,
बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा ।।
गंगा नहाने हरिद्वार काशी गया,
गंगा नहाते ही मन में ख्याल आ गया,
तन को धोया मगर मन को धोया नहीं,
फिर गंगा नहाने से क्या फायदा,
कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं,
बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा ।।
मैंने वेद पढ़े, मैंने शास्त्र पढ़े,
शास्त्र पढ़ते हुए ये ख्याल आ गया,
मैंने ज्ञान किसी को बाँटा नहीं,
फिर ज्ञानी कहलाने से क्या फायदा,
कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं,
बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा ।।
माँ पिता के ही चरणों में चारो धाम है,
आजा आजा ये ही मुक्ति का धाम है,
पिता माता की सेवा की ही नहीं,
फिर तीर्थों में जाने से क्या फायदा,
कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं,
बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा ।।