श्री राम लखन ले व्याकुल मन: यह भजन भगवान श्रीराम के उस गहन दर्द और व्याकुलता का भावपूर्ण चित्रण करता है जब वे लक्ष्मण के साथ कुटिया लौटते हैं और वहाँ माता सीता को न पाकर व्याकुल हो उठते हैं। खाली पड़ी कुटिया, बिखरे हुए आभूषण और सूने उपवन देखकर राम का हृदय करुणा से भर जाता है। सीता के न मिलने पर उनकी आँखों में आँसू उमड़ पड़ते हैं और हर दृश्य सीता हरण की वेदना को बयाँ करता है। लक्ष्मण भी भावुक होकर सत्य प्रकट करते हैं और बताते हैं कि भाभी के चरण ही उनके लिए तीर्थ समान रहे हैं। यह भजन राम-सीता के विरह, प्रेम और राम के करुण हृदय को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करता है।
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए,
नहीं पाई सिया अकुलाए नयन भर लाए,
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए ।।
सूनापन इतना गहरा था, श्रीराम का जी घबराया,
सारे पिंजरे थे खुले हुए, एक पंछी भी नजर नहीं आया,
थे धूल-धूल कलियाँ और फल, थे पात-पात मुरझाए,
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए ।।
सीता के कुछ आभूषण पथ पर, इधर-उधर बिखरे थे,
अन्याय और दुखभरी सिया की, करूण कथा कहते थे,
शोभा सिंगार एक चन्द्रहार, देखा तो राम अकुलाए,
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए ।।
आँसू का सागर उमड़ पड़ा, सुध-बुध भूले रघुनंदन,
यह हार मेरी सीता का न हो, पहचानो सुमित्रा नन्दन,
तब चरण पकड़ सिसकी भर-भर, लक्ष्मण ने भेद बताये,
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए ।।
कैसे बतलाऊँ क्षमा करो, भइया ये हार अदेखा,
मैने जब भी देखा, भाभी के चरणों को ही देखा,
वो लाल बरन भाभी के चरण, मेरे तीर्थ धाम कहलाए,
श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए ।।
लिरिक्स – अनूप जलोटा जी, माया गोविन्द जी