कभी फुर्संत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना: यह भजन माँ जगदम्बा की करुणा और कृपा की भावनाओं से ओत-प्रोत है। इसमें एक निर्धन भक्त अपनी गरीबी और असमर्थता को माँ के चरणों में समर्पित करता है। सोने का छत्र, चुनरी या मेवे-मिष्ठान ना दे पाने के बावजूद वह केवल अपनी सच्ची श्रद्धा और भक्ति माँ को अर्पित करता है। इस भजन में माँ से प्रार्थना है कि वे भक्त के घर पधारें, चाहे वहाँ सादा भोजन और साधारण वातावरण ही क्यों न हो। यह रचना भक्ति, विनम्रता और माँ के प्रति अटूट विश्वास का सजीव चित्रण करती है।
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे लिरिक्स in hindi
कभी फुर्संत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उसका भोग लगा जाना ।।
तर्ज – बाबुल की दुआएं लेती जा ।
ना छत्र बना सका सोने का, ना चुनरी घर मेरे तारो जड़ी,
ना पड़े बर्फी मेवा है माँ, बस श्रद्धा है नयन बिछाये खड़ी,
इस श्रद्धा की रखलो लाज है माँ, इस अर्जी को ना ठुकरा जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उसका भोग लगा जाना ।।
जिस घर के दीये में तेल नहीं, वहां ज्योति जगाऊँ माँ कैसे,
मेरा खुद ही बिछौना धरती पर, तेरी चौकी सजाऊँ माँ कैसे,
जहाँ मैं बैठा वहाँ बैठ के माँ, बच्चों का दिल बहला जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उसका भोग लगा जाना ।।
तू भाग्य बनाने वाली है, माँ मैं तकदीर का मारा हूँ,
हे दाती संभालों भिखारी को, आखिर तेरी आँख का तारा हूँ,
मैं दोषी तूँ निर्दोष है माँ, मेरे दोषों को तू भुला जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उसका भोग लगा जाना ।।