भजन “इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले” एक भावपूर्ण प्रार्थना है जिसमें भक्त अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भगवान से कृपा की याचना करता है। इस भजन में भक्ति और आत्मसमर्पण की गहराई झलकती है, जहाँ गायक भगवान से निवेदन करता है कि जब उसका प्राण शरीर से निकले, तब प्रभु का नाम उसकी जिह्वा पर हो और ईश्वर की कृपा उसे मुक्ति का मार्ग दिखाए। यह भजन जीवन की नश्वरता, मृत्यु की सच्चाई और भगवान के चरणों में शरणागति का संदेश देता है।
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले लिरिक्स
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले,
गोविन्द नाम लेके, फिर प्राण तन से निकले ।।
श्री गंगा जी का तट हो, यमुना का वंशीवट हो,
मेरा सांवरा निकट हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले ।।
पीताम्बरी कसी हो, छवि मन में यह बसी हो,
होठों पे कुछ हसी हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले ।।
जब कंठ प्राण आए, कोई रोग ना सताए,
यम दर्श ना दिखाए, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले ।।
श्री वृन्दावन का स्थल हो, मेरे मुख में तुलसी दल हो,
विष्णु चरण का जल हो, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले ।।
उस वक़्त जल्दी आना, नहीं श्याम भूल जाना,
राधे को साथ लाना, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले ।।
एक भक्त की है अर्जी, खुदगर्ज की है गरजी,
आगे तुम्हारी मर्जी, जब प्राण तन से निकले,
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले ।।
क्यों पढ़ें यह भजन?
यह भजन मनुष्य को याद दिलाता है कि धन, मान-सम्मान और मोह-माया सब अस्थायी हैं, पर प्रभु का नाम शाश्वत है। इसे पढ़ने से मृत्यु का भय कम होता है और जीवन में भक्ति, श्रद्धा और संतोष की अनुभूति होती है।
कब पढ़ें यह भजन?
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प्रातःकाल या संध्या के समय ध्यान और भक्ति के साथ।
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जब मन दुख, चिंता या मोह-माया से विचलित हो।
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सत्संग, भजन संध्या या किसी धार्मिक अवसर पर।
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जीवन की नश्वरता को स्मरण कर प्रभु के नाम में लीन होने के लिए।
यह भजन हर इंसान को यह प्रेरणा देता है कि जब जीवन का अंत हो, तब प्रभु का नाम ही हमारी अंतिम स्मृति और सच्ची मुक्ति का मार्ग बने।
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