यह अत्यंत भावपूर्ण भजन “आओ भोग लगाओ मेरे मोहन” भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम, भक्ति और भोग आराधना का वर्णन करता है। इसमें भक्त रासलीला, वृंदावन की गलियाँ और भगवान के प्रिय भोग का आनंद व्यक्त करता है।
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन लिरिक्स in Hindi
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन,
दुर्योदन की मेवा तयादी,
साद विधुर घर खाओ मेरे मोहन,
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन ।।
सबरी के बेर सुदामा के कुण्डल,
प्रेम से भोग लगाओ मेरे मोहन,
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन ।।
वृदावन की कुञ्ज गली मे,
आओं रास रचाओ मेरे मोहन,
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन ।।
राधा और मीरा भी बोले,
मन मंदिर में आओ मेरे मोहन,
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन ।।
गिरी शुवारा किशमिश मेवा,
माखन मिश्री खाओ मेरे मोहन,
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन ।।
सत युग त्रेता दवापर कलयुग,
हर युग दरस दिखाओ मेरे मोहन,
आओ भोग लगाओ मेरे मोहन ।।
भजन का भाव
भजन में बताया गया है कि भक्त भगवान श्रीकृष्ण को भोग अर्पित कर उनके प्रेम और कृपा का अनुभव करता है।
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“आओ भोग लगाओ मेरे मोहन” — भक्त मन से श्रीकृष्ण को भोग अर्पित करने का आमंत्रण देता है और उनके प्रति प्रेम प्रकट करता है।
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“सबरी के बेर सुदामा के कुण्डल” — भोग में प्रेम और श्रद्धा का संगम होता है, जैसे सुदामा और भगवान की मित्रता का प्रतीक।
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“वृंदावन की कुञ्ज गली मे, आओं रास रचाओ मेरे मोहन” — भक्त रासलीला के आनंद में सम्मिलित होने की कामना करता है।
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“राधा और मीरा भी बोले, मन मंदिर में आओ मेरे मोहन” — यह दर्शाता है कि राधा और भक्त मीरा भी भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति में लीन हैं।
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“सत युग त्रेता द्वापर कलयुग, हर युग दरस दिखाओ मेरे मोहन” — भगवान हर युग में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और उनके जीवन को मंगलमय बनाते हैं।
क्यों गाया जाता है यह भजन
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भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति व्यक्त करने के लिए।
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भक्त के हृदय में आनंद, प्रेम और भोग आराधना का भाव जगाने के लिए।
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रासलीला, वृंदावन और भोग के माध्यम से श्रीकृष्ण के दिव्य रूप का स्मरण करने के लिए।
🎵 कब गाएं
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जन्माष्टमी, राधाष्टमी या रासलीला उत्सवों में।
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मंदिर में भजन संध्या या व्यक्तिगत साधना और आराधना के समय।
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जब भक्त भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और प्रेम में लीन होना चाहता हो।
संक्षिप्त भावार्थ
“हे मोहन! तुम्हारे भक्त तुम्हें प्रेम और श्रद्धा के साथ भोग अर्पित कर रहे हैं। वृंदावन की गलियों में रास रचाना, राधा और मीरा के साथ प्रेम का अनुभव करना और हर युग में तुम्हारा दर्शन पाना ही जीवन का सर्वोच्च सुख है। तुम्हारे चरणों में अर्पित भोग से भक्त का हृदय आनंद और प्रेम में डूब जाता है।”
यह भजन गाते समय भक्त का मन भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम, भोग और रासलीला में रम जाता है और उसे यह अनुभव होता है कि प्रभु स्वयं प्रेम और आनंद के साक्षात स्वरूप हैं।





















