यह भजन “रामा रामा रटते रटते बीती रे उमरिया” अत्यंत मार्मिक, भक्ति और विरह से भरा हुआ है। इसमें शबरी की अटूट श्रद्धा, सच्ची प्रतीक्षा और भगवान श्रीराम के प्रति उसकी अमर भक्ति का अद्भुत वर्णन मिलता है। यह भजन केवल शबरी की कथा नहीं — यह हर भक्त की आत्मकथा है, जो अपने ईश्वर की प्रतीक्षा में प्रेम और विश्वास का दीप जलाए बैठा है। यह सिखाता है कि भक्ति का सार किसी विधि में नहीं, बल्कि भाव में है।
रामा रामा रटते रटते बीती रे उमरिया लिरिक्स
रामा रामा रटते रटते, बीती रे उमरिया,
रघुकुल नंदन कब आओगे, भिलनी की डगरिया ।।
मैं शबरी भिलनी की जाई, भजन भाव ना जानु रे,
राम तेरे दर्शन के हित, वन में जीवन पालूं रे,
चरणकमल से निर्मल करदो, दासी की झोपड़िया,
रामा रामा रटते रटते, बीती रे उमरिया ।।
रोज सवेरे वन में जाकर, रस्ता साफ़ कराती हूँ,
अपने प्रभु के खातिर वन से, चुन चुन के फल लाती हूँ,
मीठे मीठे बैरन से भर, लाई में छबरिया,
रामा रामा रटते रटते, बीती रे उमरिया ।।
श्याम सलोनी मोहिनी मूरत, नैयनो बीच बसाऊंगी,
सुबह शाम नित उठकर मै तो, तेरा ध्यान लगाऊँगी,
पद पंकज की रज धर मस्तक, जीवन सफल बनाउंगी,
अब क्या प्रभु जी भूल गए हो, दासी की डगरिया,
रामा रामा रटते रटते, बीती रे उमरिया ।।
नाथ तेरे दर्शन की प्यासी, मैं अबला इक नारी हूँ,
दर्शन बिन दोऊ नैना तरसें, सुनलो बहुत दुखारी हूँ,
हरी रूप में दर्शन देदो, डालो एक नजरिया,
रामा रामा रटते रटते, बीती रे उमरिया ।।
भावार्थ एवं सारांश
यह भजन रामा रामा रटते रटते बीती रे उमरिया भक्त शबरी की करुण पुकार है — जिसने अपने प्रभु श्रीराम के दर्शन के लिए पूरी जिंदगी प्रतीक्षा की। उसने ना केवल भक्ति की, बल्कि अपने प्रेम और समर्पण से दिखाया कि सच्चा प्रेम किसी जाति, रूप या ज्ञान का नहीं, बल्कि हृदय की निर्मलता का विषय है।
पहला पद:
“रामा रामा रटते रटते बीती रे उमरिया…”
शबरी कहती है — प्रभु, पूरी उम्र तुम्हारा नाम जपते जपते निकल गई, अब तो मेरे चरणों की मिट्टी सूख गई, आँखें तुम्हारे दर्शन की राह देख-देख कर थक गईं।
वह भाव से कहती है — “हे रघुकुल नंदन! कब पधारोगे मेरी इस डगरिया पर?”
दूसरा पद:
“मैं शबरी भिलनी की जाई…”
वह विनम्रता से स्वीकार करती है कि वह साधारण वनवासी है, न कोई वेद-शास्त्र जानती है, न पूजा की विधि।
लेकिन उसका प्रेम ही उसकी पूजा है।
वह कहती है — “मेरे छोटे से झोंपड़े में पधारो प्रभु, और अपने चरणकमलों से इसे पवित्र कर दो।”
तीसरा पद:
“रोज सवेरे वन में जाकर…”
शबरी की दिनचर्या यही है — प्रभु के आने का मार्ग साफ करना, मीठे फलों को चुनकर रखना।
वह सोचती है — “कहीं आज ही राम आएंगे।”
उसकी हर सुबह, हर साँस, उम्मीद से भरी होती है।
यह प्रतीक्षा उसकी भक्ति का सबसे सुंदर रूप है।
चौथा पद:
“श्याम सलोनी मोहिनी मूरत…”
शबरी राम के स्वरूप की कल्पना करती है — श्यामवर्ण, मोहिनी मूरत, कमलनयन।
वह नित्य सुबह-शाम उनके ध्यान में लीन रहती है, और उनके चरणों की धूल को जीवन का सबसे बड़ा आभूषण मानती है।
वह पूछती है — “क्या प्रभु मेरी डगर भूल गए?” — यह प्रश्न भक्त के विरह की पराकाष्ठा दर्शाता है।
पाँचवाँ पद:
“नाथ तेरे दर्शन की प्यासी…”
यहाँ शबरी की तड़प अपने चरम पर है।
वह कहती है — “हे प्रभु! तेरे दर्शन की प्यासी यह दासी बहुत दुखी है। मेरी आँखें तेरी प्रतीक्षा में सूख गई हैं। अब कृपा कर एक झलक दिखा दो।”
कब गाया जाए:
-
राम नवमी, शबरी जयंती या श्रीराम कथा के अवसर पर।
-
भजन संध्या या एकांत ध्यान में।
-
जब मन प्रभु की प्रतीक्षा या प्रेम में डूबा हो।









