संसार समन्दर में डगमग मेरी नैया है लिरिक्स (Sansar samandar mein dagmag meri naiya hai lyrics in hindi)

यह अत्यंत भावपूर्ण और भक्तिमय भजन “संसार समन्दर में डगमग मेरी नैया है” एक गहरे आत्मिक समर्पण और श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। इस भजन में भक्त अपने जीवन की कठिनाइयों को “संसार रूपी समंदर” से तुलना करते हुए, भगवान श्रीकृष्ण से अपनी नैया पार लगाने की प्रार्थना करता है। यह भजन भक्त और भगवान के बीच के प्रेम, आस्था और भरोसे का सुंदर संगम है। भजन “संसार समन्दर में डगमग मेरी नैया है” भक्त और भगवान श्रीकृष्ण के बीच की गहरी आत्मीयता और पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। इसमें भक्त अपने जीवन की कठिनाइयों को श्रीकृष्ण के समक्ष रखता है और उनसे अपनी नैया पार लगाने की विनती करता है। यह भजन विश्वास, भक्ति और प्रेम का अद्भुत संगम है।

संसार समन्दर में डगमग मेरी नैया है

संसार समन्दर में डगमग मेरी नैया है लिरिक्स in Hindi

संसार समन्दर में, डगमग मेरी नैया है,
गिरधारी ओ मुरारी, दीखै ना खिवैया है ।।

तर्ज – एक प्यार का नगमा है ।

खेना बड़ा मुश्किल है, दिल में बड़ी हलचल है,
पाऊँगा पहुंच कैसे, लम्बी मेरी मंजिल है,
ओ बांकी अदा वाले, सुन कृष्ण कन्हैया है ।।

दाता यही कहना है, व्याकुल दोऊ नैनां है,
ओ मोर मुकुटधारी, मेरे साथ में रहना है,
उम्मीद यही दिल में, प्रभु पार लगईया है ।।

जग के प्रतिपालु हो, प्रभु दीनदयालु हो,
दुख-दर्द सुना अपना, अरमान निकालूँ हो,
बेजोड़ मदारी हूँ, संसार नचैया है ।।

क्या श्याम बहादुर के, दिलदार नहीं तुम हो,
मुद्दत से पुराने क्या, मेरे यार नहीं तुम हो,
ठाकुर मन मंदिर का, ‘शिव’ ज्योत जगैया है ।।

लिरिक्स – शिव चरण भीमराजका जी

भजन का भावार्थ एवं सार

भक्त कहता है — “हे गिरधारी, हे मुरारी! मेरी जीवन-नैया संसार के विशाल और अशांत सागर में डगमगा रही है। इस यात्रा में मुझे कोई खेवैया (संचालक) नहीं दिखता, इसलिए अब आप ही मेरे मार्गदर्शक और रक्षक बन जाइए।”

यह पंक्ति केवल प्रार्थना नहीं, बल्कि भक्ति में समर्पण की चरम अवस्था को दर्शाती है — जब भक्त पूरी तरह से अपने ईश्वर पर निर्भर हो जाता है।

पहला पद:

“खेना बड़ा मुश्किल है, दिल में बड़ी हलचल है…”
यहाँ भक्त जीवन की कठिन राह का वर्णन करता है।
वह कहता है कि मंज़िल लंबी है, मार्ग कठिन है, और मन में अस्थिरता है।
अब केवल एक ही आशा बची है — श्रीकृष्ण की कृपा।
वे ही वह सखा हैं जो इस नैया को पार लगा सकते हैं।

दूसरा पद:

“दाता यही कहना है, व्याकुल दोऊ नैनां है…”
 यहाँ भक्त अपनी भावनाओं का इज़हार करता है कि उसके नयन प्रभु के दर्शन के लिए तरस रहे हैं।
वह श्रीकृष्ण से कहता है — “ओ मोर मुकुटधारी, तू सदा मेरे साथ रहना।”
इस पद में भक्ति का भाव अपने चरम पर है — एक निरंतर संग की प्रार्थना।

तीसरा पद:

“जग के प्रतिपालु हो, प्रभु दीनदयालु हो…”

भक्त अपने कष्टों और दुखों को प्रभु के सामने रखता है।
वह जानता है कि श्रीकृष्ण दीनों के दयालु हैं और उनके बिना कोई भी इस संसार में स्थिर नहीं रह सकता।
यह पद आत्मा की पुकार है — दुख से मुक्ति और ईश्वर की कृपा की याचना।

चौथा पद:

“क्या श्याम बहादुर के, दिलदार नहीं तुम हो…”
यहाँ भजन का भाव अत्यंत मधुर और आत्मीय हो जाता है।
भक्त कहता है — “हे ठाकुर! क्या अब तुम मेरे पुराने सखा नहीं रहे?”
यह वाक्य कृष्ण-भक्त के व्यक्तिगत संबंध को प्रकट करता है।
‘शिव चरण भीमराजका जी’ की लेखनी इस भाव को बेहद सहज और गहराई से अभिव्यक्त करती है।

संक्षिप्त भावार्थ:

“हे श्रीकृष्ण! मेरा जीवन एक डगमगाती नैया है जो संसार के अशांत सागर में डूबने को है। आप ही मेरे जीवन के खेवैया हैं, मेरी आशा और मेरे रक्षक हैं। मुझे अपने चरणों में स्थान दो ताकि मैं सुरक्षित पार पहुँच सकूं।”

क्यों गाया जाता है यह भजन:

  • जब मन जीवन की कठिनाइयों से व्याकुल हो।

  • जब भक्त अपने प्रभु से आत्मिक संवाद करना चाहे।

  • श्रीकृष्ण की कृपा, विश्वास और संग की अनुभूति के लिए।

कब गाएं:

  • भजन संध्या या श्रीकृष्ण आरती के समय।

  • ध्यान, ध्यान-साधना या एकांत में प्रभु चिंतन के दौरान।

  • जब मन को शांति, स्थिरता और आस्था की आवश्यकता हो।

 

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