यह अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण भजन “कन्हैया एक नज़र जो आज तुझको देखता होगा” भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य सुंदरता, मोहकता और अलौकिक आभा का वर्णन करता है। इसमें कवि ने उस अद्भुत क्षण की कल्पना की है जब कोई भक्त श्रीकृष्ण को निहारता है — वह दृश्य इतना अनुपम होता है कि स्वयं ईश्वर भी उसे देखकर चकित रह जाए।
कन्हैया एक नज़र जो आज तुझको देखता होगा लिरिक्स
कन्हैया एक नज़र जो आज तुझको देखता होगा,
मेरे सरकार को किसने सजाया सोचता होगा ।।
तर्ज – खुदा भी आसमा से जब जमी पर देखता होगा ।
सजा कर खुद वो हैरान है, के ये तस्वीर किसकी है,
सजाया तुझको जिसने भी, हसी तकदीर उसकी है,
कभी खुश हो रहा होगा, ख़ुशी से रो रहा होगा,
कन्हैया एक नज़र जो आज तुझको देखता होगा ।।
ज़माने भर के फूलो से, कन्हैया को लपेटा है,
कलि को गूथ कर कितने, ही गजरो में समेटा है,
सजा शृंगार न पहले, न कोई दूसरा होगा,
कन्हैया एक नज़र जो आज तुझको देखता होगा ।।
फ़रिश्ते भी तुझे छुप छुप, के कान्हा देखते होंगे,
तेरी तस्वीर में खुद की, झलक वो देखते होंगे,
‘हर्ष’ के दिल पे जो गुजरे, ये वो ही जानता होगा,
कन्हैया एक नज़र जो आज तुझको देखता होगा ।।
लिरिक्स – गोपाल जी भटिआ
भजन का भाव
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कवि कहता है कि जो आज श्रीकृष्ण को देख रहा होगा, वह इस सोच में डूबा होगा कि इतने सुंदर और मनोहर कन्हैया को किसने सजाया होगा।
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यह भजन रूप माधुरी और भक्ति रस का संगम है, जिसमें श्रीकृष्ण की छवि को फूलों, गजरे और श्रृंगार से सजे हुए रूप में दर्शाया गया है।
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कवि यह भी कहता है कि स्वयं सजाने वाला भी अपने कार्य को देखकर विस्मित हो गया होगा — क्योंकि ऐसी सुंदरता मानव कल्पना से परे है।
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अंत में कवि कहता है कि स्वर्ग के देवता तक कृष्ण को देखकर अपनी ही झलक देखने लगते हैं, क्योंकि कृष्ण ही सौंदर्य और प्रेम के मूल स्रोत हैं।
क्यों गाया जाता है यह भजन
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श्रीकृष्ण की अलौकिक सुंदरता और माधुर्य का अनुभव करने के लिए।
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मन में प्रेम और आनंद का भाव जगाने के लिए।
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भक्त को यह स्मरण कराने के लिए कि श्रीकृष्ण केवल एक देवता नहीं, बल्कि प्रेम, माधुर्य और सौंदर्य के जीवंत स्वरूप हैं।
कब गाएं
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जन्माष्टमी, राधाष्टमी, या श्रीकृष्ण के श्रृंगार दर्शन के समय।
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भजन संध्या, मुरली उत्सव या मंदिर में श्रृंगार आरती के बाद।
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जब मन प्रेम, आनंद और माधुर्य के भाव से भरा हो।
संक्षिप्त भावार्थ
“जो भी आज कन्हैया को देखता है, वह विस्मित रह जाता है — क्योंकि उनकी सुंदरता अतुलनीय है। जिसने भी उन्हें सजाया, उसका भाग्य धन्य है। स्वयं स्वर्ग के देवता भी उनकी इस छवि को देखकर मोहित हो जाते हैं। ऐसा श्रृंगार, ऐसा माधुर्य न कभी हुआ था, न होगा।”
यह भजन गाते समय भक्त का मन श्रीकृष्ण की सुंदर छवि में खो जाता है, और उसे यह अनुभव होता है कि प्रभु स्वयं सौंदर्य के साक्षात स्वरूप हैं।
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