यह अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण भजन “करुणामयी किरपामयी मेरी दयामयी राधे” श्री राधारानी और श्यामा की अनंत करुणा, प्रेम और भक्ति का गुणगान करता है। इसमें कवि वृंदावन की महिमा, रासलीला और भक्तों पर उनकी कृपा का विस्तार से वर्णन करता है।
करुणामयी किरपामयी, मेरी दयामयी राधे लिरिक्स
करुणामयी किरपामयी,
मेरी दयामयी राधे ।।
पद – जुगल नाम सो नेम,
जपत नित कुंज बिहारी,
अविलोकित रहे केलि सखी,
सुख को अधिकारी ।
गान कला गंधर्व,
श्याम श्यामा को तोषे,
उत्तम भोग लगाय,
मोर मरकट तिमि पोषे ।
नृपति द्वार ठाड़े रहे,
दरसन आशा जासकी,
आशधीर उद्योत कर,
रसिक छाप हरिदास की ।।
करुणामयी किरपामयी,
मेरी दयामयी राधे,
मेरी दयामयी श्यामा,
मेरी करुणामयी राधे,
करुणा मयी किरपा मयी,
मेरी दयामयी श्यामा,
करुणा मयी किरपा मयी,
मेरी दयामयी राधे ।।
धन्य वृन्दावन धाम है,
धन्य वृन्दावन नाम,
धन वृंदावन रसिक जन,
जे सुमिरे श्यामा श्याम ।।
श्यामा श्यामा श्यामा श्यामा,
श्यामा श्यामा श्यामा श्यामा ।।
प्रिया लाल राजे जहाँ,
तहाँ वृन्दावन जान,
वृन्दावन तज एक पग,
जाए ना रसिक सुजान ।।
श्यामा श्यामा श्यामा श्यामा,
श्यामा श्यामा श्यामा श्यामा ।।
जो सुख वृंदाविपिन में,
अंत कहु सो नाय,
बैकुंठहु फीको पड्यो,
ब्रज जुवती ललचाए ।।
श्यामा श्यामा श्यामा श्यामा,
श्यामा श्यामा श्यामा श्यामा ।।
वृंदावन रस भूमि में,
रस सागर लहराए,
श्री हरिदासी लाड़ सो,
बरसत रंग अघाय ।।
करुणा मयी किरपा मयी,
मेरी दयामयी राधे ।।
नमो नमो जय श्री वृंदावन,
रस बरसत घन घोरी,
नमो नमो जय कुंज महल नित,
नमो नमो जा में सुख होरी,
नमो नमो श्री कुंज बिहारीन,
नमो नमो प्रितम चितचोरी,
नमो नमो जय श्री हरिदासी,
नमो नमो इन्ही की जोरी ।।
हे स्वामिनी अपने अमर प्यार की,
एक बूँद छलका दो,
बिहारिजु सो मेरे मिलन की,
दो बातें करवा दो ।।
विरह वेदना से टूटी,
इन तारो को झनका दो,
रोम रोम हो गिरा नाम रस,
उन्मद नाच नचा दो ।
एक बूँद छलका दो,
दो बातें करवा दो ।।
करुणा मयी किरपा मयी,
मेरी दयामयी राधे ।।
मोर जो बनाओ तो,
बनाओ श्री वृंदावन को,
नाच नाच घूम घूम,
तुम्ही को रिझाऊंगो ।
बंदर बनाओ तो,
बनाओ श्री निधिवन को,
कूद कूद फांद वृक्ष,
जोरन दिखाऊंगो ।।
भिक्षुक बनाओ तो,
बनाओ ब्रज मंडल को,
टूक हरि भक्तन सों,
मांग मांग खाउंगो ।
भृंगी जो करो तो करो,
कालिन्दी के तीर मोहे,
आठों याम श्यामा श्याम,
श्यामा श्याम गाउंगो ।।
श्यामा श्यामा श्यामा श्यामा,
श्यामा श्यामा श्यामा श्यामा ।।
एक बार अयोध्या जाओ,
दो बार द्वारिका,
तीन बार जाकर,
त्रिवेणी में नहाओगे ।
चार बार चित्रकूट,
नौ बार नासिक में,
बार बार जा के,
बद्रीनाथ घूम आओगे ।।
कोटि बार काशी,
केदारनाथ रामेश्वर में,
गया जगन्नाथ आदि,
चाहे जहाँ जाओगे ।।
होते है प्रत्यक्ष यहाँ,
दर्श श्याम श्यामा के,
वृन्दावन सा कही,
आनंद नहीं पाओगे ।।
करुणा मयी किरपा मयी,
मेरी दयामयी श्यामा,
करुणा मयी किरपा मयी,
मेरी दयामयी राधे ।।
करुणामयी किरपामयी,
मेरी दयामयी राधे,
मेरी दयामयी श्यामा,
मेरी करुणामयी राधे,
करुणा मयी किरपा मयी,
मेरी दयामयी श्यामा,
करुणा मयी किरपा मयी,
मेरी दयामयी राधे ।।
भजन का भाव
भजन में बताया गया है कि राधा रानी और श्यामा दोनों करुणामयी हैं। उनके चरणों में जीवन समर्पित कर भक्त आनंद, प्रेम और भक्ति के रस में डूब जाता है।
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“जुगल नाम सो नेम, जपत नित कुंज बिहारी” — भक्त लगातार राधा-कृष्ण के नाम का जप करता है और उनके प्रेममय कुंज में रम जाता है।
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“करुणामयी किरपामयी, मेरी दयामयी राधे” — राधारानी और श्यामा दोनों अनंत करुणा और कृपा वाले हैं, जो भक्त के दुख हरते हैं और उसे सुख प्रदान करते हैं।
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भजन में वृंदावन, निधिवन, हरिदास आदि स्थल और उनके आनंद, रंग और रस का वर्णन है, जिससे भक्त को यह अनुभव होता है कि यही वास्तविक भक्ति और आनंद का स्थान है।
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भजन में यात्रा, दर्शन और आराधना का भी वर्णन है, जैसे — अयोध्या, द्वारिका, त्रिवेणी, चित्रकूट, नासिक, बद्रीनाथ, काशी, केदारनाथ, जगन्नाथ आदि — परंतु वृंदावन का आनंद सर्वोपरि बताया गया है।
भजन में यह संदेश है कि जहां भी भक्त राधारानी और श्यामा के चरणों में प्रेमपूर्वक समर्पण करता है, वही सच्चा सुख और आनंद मिलता है।
क्यों गाया जाता है यह भजन
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राधारानी और श्यामा के प्रति प्रेम और श्रद्धा व्यक्त करने के लिए।
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भक्त के हृदय में भक्ति, करुणा और प्रेम रस जगाने के लिए।
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वृंदावन और श्यामा के अद्भुत रूपों का स्मरण कर मन को आनन्दित करने के लिए।
कब गाएं
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राधाष्टमी, जन्माष्टमी, मुरली उत्सव या रासलीला उत्सवों में।
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मंदिर में भजन संध्या या व्यक्तिगत साधना के समय।
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जब भक्त मन से करुणा, प्रेम और भक्ति का अनुभव करना चाहता हो।
संक्षिप्त भावार्थ
“हे राधारानी और श्यामा! आप दोनों करुणामयी हैं, आपकी कृपा से भक्तों का जीवन सुखमय और संतोषपूर्ण बनता है। वृंदावन और आपके कुंज में रमने से भक्त को सभी सुख, प्रेम और आनंद की प्राप्ति होती है। आपके चरणों में समर्पण ही जीवन का सर्वोच्च साधन है।”
यह भजन गाते समय भक्त का मन राधा-श्यामा की करुणा और प्रेम में डूब जाता है और उसे अनुभव होता है कि उनका आशीर्वाद जीवन को पूर्णता और आनंद प्रदान करता है।
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