यह अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण भजन — “तेरे मोटे मोटे नैन कजरारे, मैं जाऊ तोपे बलिहारी” — एक भक्त का अपने आराध्य श्यामसुंदर (बांके बिहारी) के प्रति प्रेम, आकर्षण और समर्पण का प्रतीक है। यह भजन रास-भाव, माधुर्य और गहन भक्ति से परिपूर्ण है, जिसमें भक्त अपने प्रिय श्याम के नैनों, मुस्कान, मुरली और जादू भरे रूप में खो जाता है।
तेरे मोटे मोटे नैन कजरारे लिरिक्स
तेरे मोटे मोटे नैन कजरारे,
मैं जाऊ तोपे बलिहारी ।।
तर्ज – तू माने या ना माने दिलदारा ।
तुझ बिन जीना भी क्या जीना,
तू है मेरे दिल का नगीना,
तूने कर दिया मुश्किल जीना,
मैं जाऊ तुझपे बलहारी,
तेरे मोटे मोटे नैन कजरारे
मैं जाऊ तोपे बलिहारी ।।
मुझ को पीला दे मस्ती का प्याला,
खोल दे नैनो की मधुशाला,
काली कमली ने जादू कर डाला,
मैं जाऊ तोपे बलिहारी,
तेरे मोटे मोटे नैन कजरारे
मैं जाऊ तोपे बलिहारी ।।
अब तो सुना दे मधुर मुरलियाँ,
तेरी लगन में हुई बावरियाँ,
देदो दर्शन बांके बिहारी,
मैं जाऊ तोपे बलिहारी,
तेरे मोटे मोटे नैन कजरा रे,
मैं जाऊ तोपे बलिहारी ।।
इतना कर्म पागल पे कर दे,
अपने यश का दामन भर दे,
बाबा रसिका ने राह दिखाई,
मैं जाऊ तोपे बलिहारी,
तेरे मोटे मोटे नैन कजरारे,
मैं जाऊ तोपे बलिहारी ।।
भजन का भावार्थ (Meaning & Bhavarth)
“तेरे मोटे मोटे नैन कजरारे, मैं जाऊ तोपे बलिहारी”
भक्त अपने प्रिय श्यामसुंदर के सुंदर, कजरारे नैनों की प्रशंसा करता है। वे नयन इतने आकर्षक और मोहक हैं कि भक्त स्वयं को उनके आगे निछावर करने को तैयार है — “मैं जाऊ तोपे बलिहारी” यानी मैं तेरे प्रेम पर बलिहारी जाता हूँ।
“तुझ बिन जीना भी क्या जीना, तू है मेरे दिल का नगीना”
भक्त कहता है कि प्रभु के बिना जीवन निरर्थक है। कृष्ण उसके हृदय के नगीने यानी सबसे अनमोल रत्न हैं।
“तूने कर दिया मुश्किल जीना” —
कृष्ण की मोहिनी छवि ने मन को इस प्रकार बांध लिया है कि अब सांस भी उन्हीं के नाम पर चलती है।
“मुझ को पीला दे मस्ती का प्याला, खोल दे नैनों की मधुशाला”
यहाँ भक्त कृष्ण प्रेम को ‘मस्ती का प्याला’ और ‘नैनों की मधुशाला’ कहता है।
वह कहता है, “हे श्याम! अपनी प्रेम की ऐसी मस्ती पिला दे कि मैं संसार की सुध-बुध भूल जाऊँ।”
“काली कमली ने जादू कर डाला” —
कृष्ण की काली कमली, उनके रूप, और उनकी मुस्कान ने भक्त को प्रेम के जादू में बाँध दिया है।
“अब तो सुना दे मधुर मुरलियाँ, तेरी लगन में हुई बावरियाँ”
यह पंक्ति विरह भाव से भरी है — भक्त अपने आराध्य से प्रार्थना करता है कि वे अपनी मधुर मुरली बजाएँ ताकि उसकी आत्मा तृप्त हो सके।
कृष्ण की मुरली की तान ही उसके लिए जीवन है।
“देदो दर्शन बांके बिहारी” —
यह अंतिम याचना है — “हे बांके बिहारी! अब अपने दर्शन दे दो, यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार होगा।”
“इतना कर्म पागल पे कर दे, अपने यश का दामन भर दे”
भक्त प्रभु से आशीर्वाद माँगता है कि वह उस पर इतना कृपा करें कि वह सदैव उनके नाम, गुण, और कीर्तन में लीन रहे।
“बाबा रसिका ने राह दिखाई” —
यहाँ ‘बाबा रसिका’ शब्द रसिक भक्त संतों की ओर इशारा करता है जिन्होंने राधा-कृष्ण प्रेम मार्ग दिखाया। भक्त कहता है कि अब उसी मार्ग पर वह चल पड़ा है, बस कृपा दृष्टि चाहिए।
सारांश
यह भजन राधा-कृष्ण भक्ति का रसभरा गीत है।
इसमें भक्त:
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श्यामसुंदर के रूप, नयन और मुरली पर मोहित है।
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अपने भीतर उमड़ते प्रेम, विरह और भक्ति को अभिव्यक्त करता है।
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अंत में भगवान से कृपा और दर्शन की विनती करता है।
गाने का उचित समय
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बांके बिहारी आरती या संध्या भजन के समय
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राधाष्टमी / जन्माष्टमी / झूलनोत्सव पर
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या जब मन श्रीकृष्ण की प्रेम-माधुरी में खो जाना चाहे
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