साँवरिया ले चल परली पार लिरिक्स (Sawariya le chal parli par lyrics in hindi)

यह अत्यंत मधुर और हृदयस्पर्शी भजन “साँवरिया ले चल परली पार” एक भक्त की अपने आराध्य श्रीकृष्ण (साँवरिया) से की गई करुण पुकार है। इसमें भक्त अपनी सम्पूर्ण आत्मा, मन, बुद्धि और कर्म श्रीकृष्ण को समर्पित कर उनसे प्रार्थना करता है कि वे उसे संसार-सागर से पार लगाएँ — उस लोक में जहाँ राधा रानी, अलबेली सरकार, विराजमान हैं।

साँवरिया ले चल परली पार लिरिक्स

साँवरिया ले चल परली पार लिरिक्स

साँवरिया ले चल परली पार,
(कन्हैया ले चल परली पार),
जहां विराजे राधा रानी, अलबेली सरकार ।।

गुण अवगुण सब तेरे अर्पण,
पाप पुण्य सब तेरे अर्पण,
बुद्धि सहित मन तेरे अर्पण,
यह जीवन भी तेरे अर्पण,
मैं तेरे चरणो की दासी, मेरे प्राण आधार,
साँवरिया ले चल परली पार ।।

तेरी आस लगा बैठी हूँ,
लज्जा शील गवा बैठी हूँ,
मैं अपना आप लूटा बैठी हूँ,
आँखें खूब थका बैठी हूँ,
साँवरिया मैं तेरी रागिनी, तू मेरा मल्हार,
साँवरिया ले चल परली पार ।।

जग की कुछ परवाह नहीं है,
सूझती अब कोई राह नहीं है,
तेरे बिना कोई चाह नहीं है,
और बची कोई राह नहीं है,
मेरे प्रियतम, मेरे मांझी, करदो बेडा पार,
साँवरिया ले चल परली पार ।।

आनंद धन जहा बरस रहा,
पीय पीय कर कोई बरस रहा है,
पत्ता पत्ता हरष रहा है,
भगत बेचारा तरस रहा है,
बहुत हुई अब हार गयी मैं, मेरे प्राण आधार,
साँवरिया ले चल परली पार ।।

भजन का भाव

भजन की शुरुआत में भक्त साँवरिया से विनती करता है —
“हे कन्हैया! मुझे उस पार ले चलो, जहाँ श्रीराधा रानी विराजती हैं।”
यह केवल वैकुंठ की यात्रा नहीं, बल्कि आत्मा की अपने परम प्रिय से मिलने की लालसा है।

फिर भक्त कहता है कि उसने अपने सारे गुण-अवगुण, पाप-पुण्य, मन-बुद्धि, और जीवन तक श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिए हैं। अब वह स्वयं को पूरी तरह प्रभु के अधीन मानती है — एक दासी की भाँति, जो अपने स्वामी पर पूर्ण श्रद्धा रखती है।

दूसरे पद में भक्त अपने त्याग और समर्पण की स्थिति को प्रकट करता है —
वह कहती है कि उसने अपनी लज्जा, शील और स्वयं का अस्तित्व तक खो दिया है, बस अब साँवरिया ही उसका एकमात्र सहारा है।
“मैं तेरी रागिनी हूँ, तू मेरा मल्हार” — यह पंक्ति आत्मा और परमात्मा के दिव्य मिलन की प्रतीक है।

तीसरे पद में भक्त कहती है कि अब संसार की कोई परवाह नहीं, कोई राह नहीं, कोई चाह नहीं — केवल प्रभु ही शरण हैं। वह उन्हें मांझी (नाविक) कहकर अपने जीवन की नैया को पार लगाने की विनती करती है।

अंत में, कवि भावविभोर होकर कहता है कि जहाँ आनंद, भक्ति और प्रेम का अमृत बरस रहा है, वहाँ हर प्राणी प्रसन्न है, किंतु भक्त अभी भी उस अमृत की एक बूंद पाने को तरस रहा है। वह थक चुकी है, हार चुकी है, और अब केवल अपने प्राणाधार श्यामसुंदर से दया की याचना करती है —
“साँवरिया, अब तो मुझे उस पार ले चलो।”

क्यों गाया जाता है यह भजन

  • ईश्वर के प्रति पूर्ण आत्मसमर्पण और भक्ति प्रकट करने के लिए।

  • जब मन संसार के दुखों से थक जाए और शांति की तलाश करे।

  • राधा-कृष्ण के माधुर्य रस और विरह भाव को अनुभव करने के लिए।

कब गाएं

  • भजन संध्या, राधा-कृष्ण आराधना, या ध्यान के समय।

  • जब मन में वैराग्य या जीवन की असहायता का भाव जागे।

  • एकांत में, जब आत्मा प्रभु से मिलन की लालसा करे।

संक्षिप्त भावार्थ

“हे साँवरिया! मैं थक गई हूँ इस संसार की राहों से। अपने सारे कर्म, विचार और जीवन तुम्हें समर्पित कर चुकी हूँ। अब केवल तुम ही मेरे मांझी हो — मुझे उस पार ले चलो, जहाँ राधा रानी विराजती हैं। तुम्हारे बिना जीवन में अब कोई चाह, राह या सहारा नहीं।”

यह भजन गाते समय भक्त का मन श्रीकृष्ण की शरण में पूरी तरह समर्पित हो जाता है, और उसे यह अनुभव होता है कि जब प्रभु ही मांझी हैं, तो जीवन की हर लहर और तूफ़ान भी अंततः उसे “परली पार” — अर्थात् मुक्ति और प्रेम के उस लोक तक पहुँचा देंगे।

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