यह अत्यंत मधुर और भावपूर्ण भजन “राधा रानी हमारी सरकार, फिकर मोहे काहे की” श्री राधारानी की करुणा, कृपा और सर्वोच्च दिव्यता का गुणगान करता है। इसमें भक्त राधारानी को तीनों लोकों की अधिष्ठात्री देवी, कृपालु माता और दीन-दुखियों की रक्षक मानकर कहता है कि जब ऐसी दयालु सरकार मेरी रानी हैं, तो मुझे किसी भी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए।
राधा रानी हमारी सरकार, फिकर मोहे काहे की लिरिक्स
(दोहा – सारद शेष की कौन गिने,
गुण गावत चारहुँ वेद की बानी,
चन्द्र से भानु से जाके है चाकर,
और द्वार रखावत शम्भू भवानी,
शक्ति की शक्ति या शक्ति की शक्ति है,
मुक्ति की भक्ति की दानी महारानी,
और काहे ना राज करे तिहूँ लोक में,
जा की है राधिका श्री महारानी)
राधा रानी हमारी सरकार, फिकर मोहे काहे की ।।
हित अधम उधारण देह धरे, बीनू कारण दीनन नेह करे,
जब ऐसी दयालु सरकार, फिकर मोहे काहे की,
राधा रानी हमारी सरकार, फिकर मोहे काहे की ।।
टूक निज जन क्रंदन सुनी पावे, तजी श्यामहु निज जन पे आवे,
जब ऐसी सरल सुकुमार, फिकर मोहे काहे की,
राधा रानी हमारी सरकार, फिकर मोहे काहे की ।।
भृकुटि नित तकत श्याम जाकी, ताकि शरणाई डर काकी,
जब ऐसी कृपालु सरकार, फिकर मोहे काहे की,
राधा रानी हमारी सरकार, फिकर मोहे काहे की ।।
भजन का भाव
दोहा में कवि राधारानी की असीम महिमा का वर्णन करते हुए कहता है —
चारों वेद उनके गुणों का गान करते हैं, चंद्र और सूर्य उनके सेवक हैं, और भगवान शिव-पार्वती स्वयं उनके द्वार की रखवाली करते हैं। वे शक्ति की भी शक्ति हैं, भक्ति और मुक्ति की दानी हैं, इसलिए तीनों लोकों में उनका राज होना स्वाभाविक है।
मुख्य भजन में कवि भक्त के भाव से कहता है —
राधारानी बिना किसी कारण के दीनों पर दया करती हैं और अधमों को भी अपना लेती हैं। जब ऐसी दयालु सरकार मेरी रानी हैं, तो मुझे किसी चिंता की आवश्यकता नहीं।
वे अपने भक्तों के रोने की आवाज़ सुनते ही, श्यामसुंदर को भी छोड़कर दौड़ी चली आती हैं — इतनी सरल, कोमल और दयामयी हैं वे।
कवि कहता है — जिनकी भौंहों की एक दृष्टि मात्र से श्रीकृष्ण स्वयं विनीत हो जाते हैं, उनकी शरण में रहकर किसी को भय कैसा हो सकता है? ऐसी कृपालु महारानी की शरण में आकर हर चिंता मिट जाती है।
क्यों गाया जाता है यह भजन
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राधारानी की शरणागति और विश्वास प्रकट करने के लिए।
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जीवन में भय, चिंता और दुःख से मुक्ति पाने के लिए।
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मन को माधुर्य और भक्ति के रस में डुबाने के लिए।
कब गाएं
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राधाष्टमी, जन्माष्टमी, संकीर्तन, या भजन संध्या के अवसर पर।
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व्यक्तिगत साधना, ध्यान या आराधना के समय।
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जब मन चिंता, भय या निराशा से घिरा हो।
संक्षिप्त भावार्थ
“हे राधा रानी! आप तीनों लोकों की महारानी हैं, शक्ति की भी शक्ति हैं, और भक्ति-मुक्ति की दानी हैं। आप बिना कारण भी दीनों पर दया करती हैं और अपने भक्तों का दुःख हर लेती हैं। जब ऐसी दयालु और कृपालु सरकार मेरी रानी हैं, तो मुझे किसी भी बात की चिंता नहीं करनी चाहिए।”
यह भजन गाते समय भक्त के हृदय में यह दृढ़ विश्वास उत्पन्न होता है कि राधारानी की शरण में रहकर जीवन की हर चिंता, भय और दुःख समाप्त हो जाते हैं। वह केवल प्रेम, शांति और करुणा के सागर में विलीन हो जाता है।
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