यह मधुर और मनमोहक भजन “तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से आयी हूँ” राधा रानी के दिव्य प्रेम, समर्पण और माधुर्य भाव का सुंदर वर्णन करता है। इसमें एक प्रेममयी गोपी (या राधा स्वरूपा) श्रीकृष्ण के प्रति अपने अटूट आकर्षण और भक्ति को व्यक्त करती है।
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से आयी हूँ लिरिक्स
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से आयी हूँ,
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की जाई हूँ ,
अरे रसिया, ओ मन बसिय, मैं इतनी दूर से आयी हूँ ।।
तर्ज़ – मुझे तेरी मौहब्बत का सहारा ।
सुना है श्याम मनमोहन, के माखन खूब चुराते हो,
तुम्हे माखन खिलाने को, मैं मटकी साथ लायी हूँ,
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की जाई हूँ,
अरे रसिया, ओ मन बसिय, मैं इतनी दूर से आयी हूँ,
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से आयी हूँ ।।
सुना है श्याम मनमोहन, के गौएँ खूब चरते हो,
तेरे गऊएँ चराने को, मैं ग्वाले साथ लायी हूँ,
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की जाई हूँ,
अरे रसिया, ओ मन बसिय, मैं इतनी दूर से आयी हूँ,
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से आयी हूँ ।।
सुना है श्याम मनमोहन, के कृपा खूब करते हो,
तेरी किरपा मैं पाने को, तेरे दरबार आई हूँ,
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की जाई हूँ,
अरे रसिया, ओ मन बसिय, मैं इतनी दूर से आयी हूँ,
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से आयी हूँ ।।
भजन का भावार्थ
“तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से आयी हूँ” — यह पंक्ति राधा रानी की गहन भक्ति और कृष्ण प्रेम का प्रतीक है। जब श्रीकृष्ण की मुरली बजती है, तो वह राधा के हृदय को आकर्षित करती है, और राधा उस दिव्य ध्वनि की ओर खिंची चली आती हैं।
“सुना है श्याम मनमोहन, के माखन खूब चुराते हो, तुम्हे माखन खिलाने को, मैं मटकी साथ लायी हूँ” — यह राधा की प्रेमपूर्ण छेड़छाड़ का रूपक है। यह संकेत देता है कि प्रेम में कोई दूरी, कोई रोक नहीं — केवल अपनापन और लाड है।
“सुना है श्याम मनमोहन, के गौएँ खूब चरते हो, तेरे गऊएँ चराने को, मैं ग्वाले साथ लायी हूँ” — यह पंक्ति ब्रज की लीलाओं की स्मृति कराती है, जहाँ राधा और गोपियाँ प्रेम और सेवा में एकाकार हो जाती हैं।
“सुना है श्याम मनमोहन, के कृपा खूब करते हो, तेरी कृपा मैं पाने को, तेरे दरबार आई हूँ” — यह पंक्ति भक्ति का चरम बिंदु है। भक्त (या राधा) भगवान से केवल कृपा की याचना करती है — क्योंकि वही कृपा उसे संसार के हर मोह से मुक्त कर देती है।
क्यों गाया जाता है यह भजन
राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम का स्मरण करने के लिए।
मुरली की धुन और कृष्ण की लीलाओं के माधुर्य को अनुभव करने हेतु।
अपने भीतर प्रेम, समर्पण और भक्ति के भाव जगाने के लिए।
कब गाएं
राधाष्टमी, जन्माष्टमी, या वृंदावन-बरसाना उत्सवों में।
मंदिर की भजन संध्या में।
ध्यान या भक्ति साधना के समय, जब मन कृष्ण प्रेम में डूबना चाहे।
संक्षिप्त सार
“हे श्याम मनमोहन! तुम्हारी मुरली की धुन ने मुझे अपने घर से खींच लिया है। मैं वृषभानु की जाई हूँ, पर तुम्हारे प्रेम में पूरी तरह समर्पित हूँ। मैं तुम्हारे प्रेम, कृपा और दर्शन की अभिलाषा लिए, तेरे द्वार आई हूँ।”
यह भजन प्रेम और भक्ति दोनों का संगम है — इसमें राधा की सरलता, समर्पण और आत्मिक आकर्षण झलकता है। जब भक्त इसे गाता है, तो उसका मन स्वयं वृंदावन की उस मुरली-धुन में खो जाता है, जहाँ केवल प्रेम, माधुर्य और राधे-श्याम की लीला विद्यमान है।





















